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19 साल बाद सावन में बन रहा है अधिक मास का संयोग , सावन माह में मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़।

19 साल बाद सावन में बन रहा है अधिक मास का संयोग , सावन माह में मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़।

हिंदू धर्म में सावन के महीने को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस माह में शिव भक्त लंबी-लंबी पैदल यात्रा कर कांवड़ में पवित्र नदियों का जल लाते हैं। और उस जल से शिवलिंग का अभिषेक करते है।

 

 

पंडित नितेश कुमार मिश्रा ने बताया कि सावन में इस बार भगवान शिव की पूजा के साथ ही भगवान विष्‍णु की पूजा का महत्‍व है। उन्होंने कहा कि इस बार सावन मास के बीच में मलमास यानी कि अधिक मास भी लग रहा है। इसे पुरुषोत्‍तम मास भी कहा जाता है। इस महीने में भगवान पुरुषोत्‍तम यानी कि विष्‍णुजी की पूजा का विशेष महत्‍व होता है। इस साल सावन का महीना और भी खास है क्योंकि सावन 59 दिन का रहने वाला है। सावन में मल मास होने के कारण सावन दो महीने का होगा। इस बार कुल 8 सावन सोमवार पड़ रहे है। 4 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो चुका है, ये 31 अगस्त 2023 तक चलेगा। सावन का पहला सोमवार बीत चुका है। पहली सोमवारी पर मंदिरों में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखी गई।

 

 

सावन के महीने में मलमास पड़ने से शिव जी की पूजा-अर्चना का दोगुना फल मिलने वाला है। इससे उन्हें शिव जी को प्रसन्न करके लाभ प्राप्त करने के लिए 8 सावन सोमवार मिलेंगे। सावन में मलमास का पड़ना बेहद शुभ माना जा रहा है। ऐसा संयोग 19 साल बाद बन रहा है। इसके पहले वर्ष 2004 में सावन महीना मे अधिक मास का संयोग बना था। अधिक मास को ही मलमास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है। अधिक मास में सूर्य संक्रांति नहीं होती इस कारण इस महीने का मलमास कहते हैं।

 

 

पंडित नितेश कुमार मिश्रा ने बताया कि इस साल विक्रम संवत् 2080 में 18 जुलाई मंगलवार से 16 अगस्त बुधवार सन् 2023 ई॰ तक अधिकमास (मल मास) रहेगा। जिस महीने में सूर्य की संक्रांति न हो, वह महीना अधिकमास और जिसमें दो संक्रांति हो, वह क्षयमास कहलाता है। ज्योतिष गणित के अनुसार एक सौर वर्ष का मान 365 दिन 6 घंटे और 99 सेकंड के लगभग है, जबकि चंद्र वर्ष 354 दिन और 8 घंटे का होता है। दोनों वर्षमानों में प्रति वर्ष 10 दिन 28 घंटे 9 मिनट का अंतर पड़ जाता है। इस अंतर में सामंजस्य स्थापित करने के लिए 32 महीने 16 दिन, 4 घंटे बीत जाने पर अधिकमास का निर्णय किया जाता है।

 

 

ज्योतिष के सिद्धांत ग्रंथों के अनुसार एक अधिक मास से दूसरे मलमास तक की अवधि अर्थात् पुनरावृत्ति 28 मास से लेकर 36 मास के भीतर होना संभव है। इस प्रकार हर तीसरे वर्ष में अधिक मास अर्थात् मलमास की पुनरावृत्ति होना निश्चित है। लोक व्यवहार में इसी को अधिकमास के अतिरिक्त मलमास और आध्यात्मिक विषयों में अत्यंत पुण्यदायी होने के कारण पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है।

 

पंडित नितेश कुमार मिश्रा के अनुसार, मलमास की उत्पत्ति हिरण्यकश्यप के कारण की गई थी. दरअसल, जब हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या की थी तो उसने वरदानक मांगा था कि मुझे कोई न दिन में मार सके, न रात में मार सके, न घर में मार सके, न बाहर मार सके और न कोई मुझे वर्ष के बारह माह में मार सके. हिरण्यकश्यप के वध की कथा तो आपने सुनी ही होगी कि किस तरह नरसिंह भगवान आधे मानव और आधे शेर के अवतार में प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप का वध किया. उसके वरदान के अनुसार ही वर्ष में 12 माह की जगह 13 माह किए गए. यह हर तीन साल बाद आता है. इसे आप लीप ईयर की तरह ही मान सकते हैं.
मलमास के महीने में किसी भी प्रकार को शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन, ग्रह प्रवेश, उपनयन संस्कार नहीं होते हैं।

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