दिवगंत पिता को बेटी ने दिया मुखागिन, सदियों से चली आ रही परंपरा तोड़ा , ग्रामीणों ने की प्रशंसा
दिवगंत पिता को बेटी ने दिया मुखागिन, सदियों से चली आ रही परंपरा तोड़ा , ग्रामीणों ने की प्रशंसा

भारतीय संस्कृति और हिंदू रिति रिवाज के मुताबिक ऐसी मान्यता बनाई गई है की बेटों द्वारा ही मुखागिन दिया जाता है , लेकिन इसके उलट एक मामला आया है जहां झारखंड के गढ़वा जिले में एक बेटी ने पुरानी परंपरा तोड़ते हुए पहले पिता के अर्थी को कंधा दिया और बाद में मुखागीन भी दी बता दें की गढ़वा के हरिपरपुर में सहायक शिक्षक अशेस्वर सिंह की निधन पर उनकी ही दोनो बेटियों ने अर्थी को कंधा दिया और शमशान जा कर वो सारे रीति रिवाज किए जो समाज द्वारा बनाया गया है की ये सारे काम लड़कों द्वारा यानी की बेटा का दायित्व है
बता दें की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में इंग्लिश ऑनर्स से सनातक में पढ़ाई कर रही आस्तिका ने मां संध्या सिंह के साथ पिता की अंतिम संस्कार के सारे रीति रिवाज को बखूभी निभाया । जानकारी के मुताबिक हरिपारपुर निवासी अध्यापक का लंबे बीमारी के बाद मंगलवार को निधन हो गया था
वहीं जब ग्रामीणों से बात हुई तो उन्होंने बताया की जब से बेटे की मृत्यु हुई है तबसे आसेश्वर सिंह काफी दुखी रहा करते थे , बता दें की उनके बेटे स्वास्तिक का निधन वर्ष 2012 में ही हो गया था , वहीं बेटी पिता की ऐसी हालात देख कर बहुत परेशान रहती थी और वो पिता के बुढ़ापे का सहारा बनने के लिए बहुत मेहनत करती थी , बताते चलें की पिछले वर्ष जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सनातक के इंग्लिश ऑनर्स के प्रवेश परीक्षा में आस्तिक ने पूरे भारत में तीसरा अंक प्राप्त किया था , और ये देख पिता भी काफी खुश थे
ग्रामीणों ने आस्तिका खूब प्रशंसा की
ग्रामीणों ने कहा की हिंदू रिति रिवाज के अनुसार बेटों को ही हक होता है की वो अपने पिता के अर्थी को कंधा साथ ही मुखाआगिन दे लेकिन हमारी गांव की अस्तिका ने जो काम किया है वो बहुत प्रशंसा के लायक है आज जमाना बदल रहा लोगों को अब जागरूक होने की जरूरत है बेटे और बेटियों में भेदभाव खत्म करना होगा जो काम बेटे कर सकते वो सारे काम बेटियां भी कर सकती है ।