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Hoysala Temple: कर्नाटक के इस मंदिर को यूनेस्को विश्व विरासत में किया गया शामिल, जानिए इस मंदिर का इतिहास

सऊदी अरब में हुए यूनेस्को विरासत समिति के 45 में सत्र में कर्नाटक के होयसल मंदिर को यूनेस्को के विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया जो भारत के लिए एक गर्व का विषय है। आपको बता दें भारत में यूनेस्को विरासत की कुल धरोहर की संख्या 42 हो गई है इस आर्टिकल में हमलोग इस मंदिर के इतिहास के बारे में जानेंगे।

Hoysala Temple: कर्नाटक के इस मंदिर को यूनेस्को विश्व विरासत में किया गया शामिल, जानिए इस मंदिर का इतिहास

UNESCO Heritage Committee: सऊदी अरब में हुए यूनेस्को विरासत समिति के 45 में सत्र में कर्नाटक के होयसल मंदिर को यूनेस्को के विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया जो भारत के लिए एक गर्व का विषय है। आपको बता दें भारत में यूनेस्को विरासत की कुल धरोहर की संख्या 42 हो गई है इस आर्टिकल में हमलोग इस मंदिर के इतिहास के बारे में जानेंगे।

 

हाल ही में यूनेस्को की विश्व विरासत में शांतिनिकेतन को शामिल किया गया था। लेकिन अब कर्नाटक के होयसल मंदिर समूह को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया। जिससे अब भारत में यूनेस्को की विश्व विरासत धरोहर की संख्या 42 हो गई है।

कर्नाटक के बेलूर, हलेबिदु और सोमनाथपुर में स्थित होयसल मंदिर समूह भारत में यूनेस्को के 42वें विश्व धरोहर स्थल बन गया हैं। होयसल मंदिरों का निर्माण 12वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान हुआ था। आपको बता दें ये मंदिर अपनी भव्य वास्तुकला और मूर्तिकला के लिए जाने जाते हैं।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की सराहना

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक के होयसल मंदिर समूह को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल करने की सराहना की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भारत के लिए गर्व का विषय है। उन्होंने कहा कि होयसल मंदिर समूह का शाश्वत सौन्दर्य और गूढ़ दर्शन भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और हमारे पूर्वजों के असाधारण शिल्प कौशल का प्रमाण हैं।

 

 

होयसल मंदिर का इतिहास

 

होयसल मंदिर जिसे हलेबिदु मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर 12वीं सदी में बनाया गया था, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर कर्नाटक राज्य के एक शहर और होयसल साम्राज्य की पूर्व राजधानी हलेबिदु में सबसे बड़ा स्मारक है। इसका निर्माण हो होयसल साम्राज्य के राजा विष्णुवर्धन ने करवाया था। इस मंदिर का निर्माण 1120 ई के आसपास शुरू हुआ और 1160 ई में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ। ये मंदिर अपनी भव्य वास्तुकला और मूर्तिकला के लिए जाने जाते हैं।

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