राजनीति

एक वक्त बड़कागांव विधायक अम्बा प्रशाद के पिता महिला के सीट पर बैठना चाहते थे।

राँची :- झारखंड में विधानसभा का चुनाव नजदीक आ रहा है। और विधानसभा के चुनाव से पहले सभी पार्टियां अपनी सांठगांठ मजबूत करने में लग गई है। झारखंड में प्रमुख क्षेत्रीय दलों में से एक झारखंड मुक्ति मोर्चा कि राजनीति एक अलग सिरे से चलती है।

 

झारखंड मुक्ति मोर्चा आदिवासी और संथाल की राजनीति करते हैं।तो वही गठबंधन में उनके सहयोगी दल कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है। झारखंड में कांग्रेस की पैठ हमेशा से कमजोर रही है।।

 

 

एक वक्त हुआ करता था जब बिहार और झारखंड एक हुआ करता था।तो 1985 के दौर में बिहार और झारखंड का क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता था पर 1985 के बाद के चुनाव में लगातार कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहे हैं।

 

इतिहासकार बताते हैं कि 1990 के बाद कांग्रेस पर शनि का प्रकोप लगा है और लगातार उसकी सीट घटती आई है।

1985 में बिहार और झारखंड जब एक था तो 324 में से 196 सीट कांग्रेस को मिले थे।

1990 के चुनाव में यह सीट घटकर 71 पर आ गया 1995 के चुनाव में 14 सीट,2000 के चुनाव में 11 सीट,और 2005 के चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 9 सीट मिले थे।

 

लेकिन आज हम बात करेंगे 2009 के चुनाव की और 2009 के चुनाव में जीते हुए कांग्रेस के एक ऐसे विधायक की जो विवादों से घिरे रहे है।

 

झारखंड में अगर रघुवर सरकार को छोड़ दिया जाए तो हमेशा से अस्थिर सरकार रही है। और इसमें से एक बड़ा कारण रहा है कि दो ऐसे दलों को मिलकर सरकार बनाना जिस की राजनीति विपरीत दिशा में चलती है।

 

झारखंड की राजनीति पर कई किताब लिखने वाले लेखक अनुज कुमार सिन्हा ने अपनी किताब झारखंड राजनीति और हालात पर लिखते हुए लिखा है कि:-

 

2013 के दौरान जब मंत्री पदों का बंटवारा जेएमएम और कांग्रेस कर रही थी तो कांग्रेस अपनी दावेदारी मजबूत कर रही थी। कांग्रेस के दो नेता मनान मलिक और योगेंद्र साव(अम्बा प्रसाद पिता) को कांग्रेस ने मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया।

मनान को पशुपालन आपदा प्रबंधन विभाग मिला तो योगेंद्र सॉ को कृषि मंत्री का पद दिया गया।

पर दोनों का पेट इस विभाग से नहीं भरा।शायद दोनों राजनीति में मोटी कमाई करने वाले विभाग की चाह रखते थे।योगेंद्र तो हमेशा से विवादों से घिरे रहे हैं।

बताया जाता है कि 2014 के दौरान जब कुछ मंत्री पर्दे के पीछे से ट्रांसफर पोस्टिंग का खेल करते थे तो उस दौरान कृषि मंत्री योगेंद्र साव खुलकर और सीना ठोक कर तबादला करवाने की बात कहते थे।उस दौरान आईजी आरके मलिक और रांची के एसएसपी साकेत कुमार सिंह के तबादले का श्रेय मंत्री ने खुद लिया था।

 

वही अरुण कुमार सिन्हा ने अपनी किताब में यह भी लिखा है कि योगेंद्र साव मैच देखने जाते थे तो खिलाड़ियों की पत्नी के लिए जो सीट आरक्षित की गई थी वहां बैठना चाहते थे खिलाड़ियों की पत्नी के बीच यह अमर्यादित होता था।जो वहां विरोध होता था तो गाज वहां के पुलिस अधिकारियों पर गिरता था। उन्होंने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था कि अधिकारियों को हटाना है।योगेंद्र कई मामले के अभियुक्त भी हैं।कहा जाता है कि 40 साल पहले की राजनीति होती तो शायद कोई मुख्यमंत्री ऐसे मंत्री को एक पल भी बर्दाश्त नहीं करता। मंत्रिपरिषद से बाहर का रास्ता दिखाता या फिर एक दल की सरकार होती तो शायद मुख्यमंत्री ऐसे विधायक को बर्खास्त कर सकते थे।पर झारखंड में सत्ता हमेशा डोलती रही है तो कोई भी मुख्यमंत्री कड़े फैसले नहीं ले पाते हैं।।

 

बता दे कि पिछले साल साढ़े चार साल का सजा काटने के बाद योगेंद्र साव जेल से निकले हैं।

 

बता दें कि एनटीपीसी की जमीन अधिग्रहण के खिलाफ चिरूडीह में प्रदर्शन के दौरान हुई गोलीबारी मामले में निचली अदालत ने योगेंद्र साव को दस साल की सजा सुनाई गई थी। उक्त आदेश के खिलाफ उनकी ओर से हाई कोर्ट में अपील दाखिल की गई थी। इसी दौरान उनकी ओर से अदालत से जमानत दिए जाने की गुहार लगाई थी।

जिसके बाद 2022 में उन्हें साढ़े चार साल बाद जमानत मिली है

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